क्या आपको पता है की चार्ट के प्रकार – Types of Charts in Stock Market in Hindi अगर आपको पता नहीं है तो आप इस ब्लॉग को पूरा पढ़े.
चार्ट के प्रकार – Types of Charts in Stock Market in Hindi
लाईन चार्ट (Line Chart):
लाईन चार्ट सबसे आसान प्रकार का चार्ट है। निचे दी हुई आकृती में लाईन चार्ट दिखाया गया है।
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line chart - technical analysis in hindi |
लाईन चार्ट में हर दिन का बंद भाव दिखाया जाता है मगर दिन के दरम्यान शेअर के भाव में हुई बढोतरी या गिरावट और साथ ही पिछले दिन का बंद भाव दिखाया नहीं जाता है।
बार चार्ट (Bar Chart):
टेक्निकल अॅनालिसीस में बार चार्ट बहुत प्रसिद्ध है। वह बाजू में दिखाया गया है। खडी लाईन का सबसे ऊपर का पाँईट उस दिन का सबसे ऊँचा भाव दिखाता है (Highest Price of the Day) और सबसे निचे का पाँईट दिन का सबसे निचा भाव (Lowest Price of the Day) दिखाता है।
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bar chart - technical analysis in hindi |
दिन के बंद भाव (Closing Price) को बाएं तरफ की आड़ी लाईन दिखाती है और दिन की शुरुआत के भाव (Opening Price) को दाए तरफ की आड़ी लाईन दिखाती है। यह चार्ट दिन के ट्रेडिंग मूव्हमेन्ट को दिखाता है।
लाईन चार्ट से बार चार्ट का हमें जादा फायदा होता है क्योंकि वह एक ही दिन का उँचा (High), निचा (Low), खुला (Open) और बंद (Close) भाव दिखाता है। बाजू में कई दिनों का बार चार्ट दिखाया गया है।
केन्डल स्टीक चार्ट (CandleStick Chart):
केन्डलस्टीक चार्ट का टेक्निकल अॅनालिसीस में बहुत उपयोग होता है। दुनिया भर के जादा से जादा देश इस चार्ट का उपयोग करते है। इसका जादा उपयोग जपान में किया जाता है।
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candle stick chart - technical analysis in hindi |
इसे जॅपनीस केन्डल स्टीक भी कहा जाता है। इस में बार चार्ट की तरह खुला भाव (Open), बंद भाव (Close), दिन का लो (Lowest Price) और हाय भाव (Highest Price) दर्शाया जाता है।
यह चार्ट कई रगों में होता है। जिस दिन स्क्रीप्ट का भाव उसके पहलेवाले दिन के भाव से कम होता है तब वह चार्ट में काले अथवा लाल रगं में दर्शाया जाता है और अगर ऊँचे भाव में बंद हुआ तो सफेद अथवा हरे रगं में बदं होता है। केन्डलस्टीक चार्ट निचे दर्शाया गया है।
सपोर्ट और रेजिस्टन्स (Support and Resistance):
सपोर्ट और रेजिस्टन्स एक निर्णायक बिंदु है जिसकी मदद से बाजार का झुकाव पहचान कर हम ट्रेडिंग कर सकते है। सामान्य रूप से मार्केट शेअर्स की डिमंड और सप्लाय पर आधारित होता है।
जब माल की डिमांड कम होती है तब शेअर्स की किमत कम होती है और मंदी का माहौल तैयार होता है। इसके विपरित शेअर्स की माँग बढ जाए तो उसके भाव बढने लगते है और तेजी का माहौल तैयार होता है।
सपोर्ट (Support) :
सपोर्ट मतलब जिस भी कम से कम भाव में हम अंदाजा लगा सकते है कि इससे और निचे भाव नहीं जाएगा और फिर उस सपोर्ट के बिंदू से शेअर का भाव फिर से (bounce back) बढने लगता है और अगर भाव उस बिंदु के निचे आया तो एकदम निचे उतरता है।
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रेजिस्टन्स (Resistance):
रेजिस्टन्स अर्थात जिस अधिक से अधिक कीमत पर हम अंदाजा लगा सकते है की इससे अधिक भाव नहीं बढ़ेगा। रेजिस्टन्स को हिंदी में प्रतिरोधक बिंदू कहते है।
यह सपोर्ट के विरूद्ध है। जब शेअर का भाव बढता जाता है, तब निवेशक को लगता है कि अब प्रॉफिट बुक करना चाहिए तब शेअर की बहुत बिक्री होती है और भाव निचे आने लगता है।
अगर बाजार के निचे गए भाव में स्थिरता आई तो उस भाव पर संपूर्ण खरीदी आती है और उस शेअर का भाव एकदम दौडने लगता है। जो निचे दिए गए ग्राफ से देख सकते है।
मुवींग एवरेज (Moving Average):
यह सबसे आसान और सीधा निर्देशक (इंडिकेटर) है। साधारण रूप से कुछ समय के शेअर्स की बदलती किमत की एवरेज किमत हमें मुवींग अँवरेज चार्ट से मिलती है।
५० दिन की मुवींग एवरेज देखने के लिए आप ५० दिन के क्लोजिंग प्राईज को जोड़कर उसे ५० से भाग दिजिए। शेअर्स की किमते हमेशा बदलती रहती है इसलिए मुवींग अँवरेज भी बदलता रहता है।
हमारी राय के अनुसार निवेशक को मार्केट के दैनिक उतार चढाँव पता होना चाहिए। उसके लिए निवेशक को दिर्घ समय के शेअर्स के दैनिक उतार चढाँव को निकाल लेना जरूरी होता है।
जादातर १५, २०, ३०, ४०, ५०, १०० और २०० दिनों का मुवींग अँवरेज उपयोग में लिया जाता है। हर दिन, हफ्ते या महिने को शेअर्स की बदलती किमत के अँवरेज को मुविंग ॲवरेज कहते है।२० दिन के मूविंग अँवरेज का उपयोग डे ट्रेडिंग केलिए किया जाता है।
डे ट्रेडिंग के लिए दो प्रकार के मुविंग अँवरेज का उपयोग किया जाता है।
सिम्पल मुविंग ॲवरेज (Simple Moving Average) और एक्सपोनेन्शियल मुविंग ॲवरेज (Exponential Moving)
१. सिम्पल मुविंग अॅवरेज (Simple Moving Average):
सिम्पल मुविंग अॅवरेज में सभी (नए या पुराने) आंकडो को समान महत्व दिया जाता है।
उदाहरण देकर बताना हो तो दस दिन की सिम्पल मुविंग अँवरेज निकालने केलिए मात्र दस दिनों के बंद भाव लेकर उसे जोडा जाता है और दस से भाग दिया जाता है।
२. एक्सपोनेन्शियल मुविंग अॅवरेज (Exponential Moving Average) :
एक्सपोनेन्शियल मविंग अॅवरेज में सभी आंकडों को अलग अलग महत्व दिया जाता है। उसमें पुराने आंकडों को कम और नए आंकडों को जादा महत्व दिया जाता है। उसे एक्सपोनेन्शियल मुविंग वेटेड ॲवरेज के नाम से भी पहचाना जाता है।
यह भी देखें:-
ट्रेन्ड (Trend):
सेंसेक्स और निफ्टी के लिस्ट में मौजूद और अच्छे फंडामेंटल वाली कंपनी के शेअर्स का ट्रेन्ड समझलेना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि उस पर ही मार्केट का उतार-चढाँव निर्भर होता है।
सरल भाषा में कहना हो तो टेन्ड याने शेअर की चाल कैसी होगी अप ट्रेन्ड, डाऊन ट्रेन्ड या साईडवे ट्रेन्ड।
डाऊन ट्रेन्ड (Downtrend):
शेअर्स के भाव दिन ब दिन निचे जाते हो तो उसे डाऊन ट्रेन्ड (Down Trend) कहा जाता है।
उसमें शेअर्स का वॉल्युम बहुत होता है। जादातर निवेशक इस वक्त बिक्री करते है। यह हम निचे के ग्राफ में देख सकते है और इसमें कई बार बहुत – स्क्रिप्ट लोअर सर्किट में जाती है।
अपट्रेन्ड (Uptrend):
शेअर्स के भाव दिन ब दिन उपर जाते हो तो उसे अप ट्रेन्ड कहा जाता है। उसमें शेअर्स का वॉल्युम बहुत होता है और सभी लोग शेअर्स खरीदने के लिए भागदौड करते है।
सभी को लगता है कि जल्दी से शेअर्स खरीदकर फायदा लिया जाए। इस से स्क्रिप्ट को उपर की सर्किट लगती है। अपट्रेन्ड हम निचे दिए ग्राफ में देख सकते है।
साईडवे ट्रेन्ड (Sideways Trend):
इस चाल के दरम्यान निवेशक बहुत जादा सुस्त होते है। शेअर्स के भाव में कम मुव्हमेन्ट देखने मिलती है और इंन्ट्राडे ट्रेडर्स को बहुत परेशानी होती है और उनका ऐसे समय मार्केट से दूर रहना ही उचित होता है।
इसमें स्टॉक की चाल निश्चित नहीं होती है। वह थोडा उपर जाता है और कुछ समय बाद फिर से निचे आता है।
दिनभर ऐसा ही चलते रहता है। ऐसे समय पिछले दिन के बंद भाव आसपास ही अगले दिन का भाव बंद होता है। इस वक्त वॉल्युम भी बहुत कम होता है और मार्केट में जादातर कोई हिस्सा नहीं लेता। साईडवे ट्रेन्ड आप आगे दिए ग्राफ में देख सकते है।
व्हॉल्यूम (Volume):
निश्चित समय में जिस संख्या में शेअर्स का लेन-देन या अदला बदली होती है उसे शेअर्स का व्हॉल्यूम कहा जाता है। टेक्निकल अॅनालिसीस में व्हॉल्यूम का विश्लेषण करना एक महत्वपूर्ण बात है।
शेअर्स में कितनी तिव्रता से खरीदी या बिक्री हो रही है इसका निश्चित निर्देश व्हॉल्यूम से ही मिलता है। अधिक व्हॉल्यूम से बाजार बढा तो बाजार की दिशा बदलने का निर्देश मिलता है। इस से पहले हर निवेशक और खिलाडियों के मन में एक ही बात होती है कि भाव बढते ही जाएगा।
नए ट्रेन्ड की शुरूआत होने के बाद व्हॉल्यूम बढते ही जाता है ऐसा नजर आता है। (उसमें खास करके ट्रेडिंग की एक निश्चित रेंज छोडकर भाव आगे बढता है)। बाजार में डर का माहौल हो तो पॅनिक सेलिंग के कारण व्हॉल्यूम बढा हुआ नजर आता है।
व्हॉल्यूम की मदद से वर्तमान ट्रेन्ड की मजबूती की जानकारी मिलती है। अपट्रेन्ड मजबूत हो तो भाव के साथ ही व्हॉल्यूम भी लगातार बढ़ता है और जब भाव निचे आता है तब व्हॉल्यूम भी कम होता है।
उसी तरह से डाऊनट्रेन्ड मजबूत हो तो जब भाव निचे आता है तब व्हॉल्यूम बढता जाता है और जब भाव उपर जाता है तब व्हॉल्यूम कम होता है।
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चार्ट पॅटर्न (Chart Patterns):
चार्ट के पॅटर्न पर से ट्रेडर्स को शेअर्स का भाव किस दिशा में आगे जानेवाला है इसका निर्देश मिलता है। यह पॅटर्न पूरा होने के बाद भाव बढता है या फिर कम होता है।
टेक्निकल अॅनालिसीस में दो प्रकार के चार्ट पॅटर्न देखने मिलते है। एक है रिवर्सल (Reversal) पॅटर्न और दुसरा है कन्टिन्युएशन (Continuation) पॅटर्न।
रिवर्सल पॅटर्न से ऐसा संकेत मिलता है कि पहले जो ट्रेन्ड चालू है वह पॅटर्न पूरा होने के बाद रिवर्स होता है याने कि पहले की विपरीत दिशा में शेअर आगे बढता है।
कन्टिन्युएशन पॅटर्न से ऐसा निर्देश मिलता है कि पॅटर्न पूरा होने के बाद पहले की ट्रेन्ड की तरह शेअर चलता है।
टेक्निकल अॅनालिसीस में व्हॉल्यूम भी महत्व की भूमिका निभाता है। इसका सेकेन्डरी इन्डिकेटर के तौर पर उपयोग किया जाता है। ट्रेन्ड बराबर से आगे बढते रहेगा या नहीं, यह निश्चित करने केलिए व्हॉल्यूम का उपयोग किया जाता है।
चार्टिस्ट द्वारा उपयोग में लाए जानेवाले कई चार्ट के पॅटर्न की जानकारी निचे दी है।
१. हेड अँड शोल्डर पॅटर्न (Head and Shoulders Pattern):
हेड अँड शोल्डर पॅटर्न एक बहुत ही लोकप्रिय और विश्वसनीय पॅटर्न है। यह एक रिवर्सल पॅटर्न है जो ऐसा निर्देश देता है कि पॅटर्न पूरा होने के बाद शेअर्स के भाव घटने लगेंगे। बाजार जब अपट्रेन्ड की नोक पर होता है तब यह पॅटर्न तैयार होता है।
इस पॅटर्न के चार विभाग है। उनमें दो शोल्डर, एक हेड और एक नेक लाईन होती है। सेकेन्ड शोल्डर की रचना होने के बाद निचे दिखाई आकृती के अनुसार नेकलाईन टुटने के बाद इस पॅटर्न की रचना पूर्ण होती है।
हेड अँड शोल्डर पॅटर्न में जब भाव गिरकर नेकलाईन के निचे चला जाता है और उसके साथ ही बाजार में व्हॉल्यूम अधिक हो तो ऐसा संकेत मिलता है कि उस स्क्रिप्ट में जादा बिक्री चल रही है। इस से ऐसा मजबूत संकेत मिलता है कि शेअर्स का भाव जल्दी ही गिर सकता है।
२. इनवर्टेड हेड अँड शोल्डर (Inverted Head and Shoulders Pattern):
यह पॅटर्न हेड अँड शोल्डर पॅटर्न के बिल्कुल विरूद्ध दिशा में चलनेवाला पॅटर्न है। इनवर्टेड हेड अँड शोल्डर पॅटर्न ऐसा निर्देश देता है कि शेअर्स के भाव में बढोतरी होगी। साधारण रूप से शेअर्स में डाऊन ट्रेन्ड हो तो इस पॅटर्न की रचना होती है। यह एक रिवर्सल पॅटर्न है।
हेड अँड शोल्डर पॅटर्न की तरह इस पॅटर्न के भी प्रमुख चार भाग है। उनमें दो शोल्डर, एक हेड और एक नेकलाईन होती है।
शेअर्स के भाव में सुधार आया तो निचे दिए चार्ट के अनुसार सेकेन्ड शोल्डर की रचना होने के बाद नेकलाईन टूट जाती है तब इस पॅटर्न की रचना पूर्ण होती है।
इन्वर्टेड हेड अँड शोल्डर पॅटर्न में जब भाव बढकर नेकलाईन के उपर चला जाता है और उसके साथ ही बाजार में अधिक व्हॉल्यूम हो तो ऐसा निर्देश मिलता है कि उस स्क्रिप्ट में जादा खरीदी हो रही है। इस से ऐसा मजबूत संकेत मिलता है कि शेअर्स का भाव जल्दी ही बढ़ सकता है।
३. डबल टॉप पॅटर्न (Double Top Pattern):
अपवर्ड ट्रेन्ड की नोक पर जब शेअर्स पहुँच जाते है तब डबल टॉप पॅटर्न की रचना होती है। इस से स्पष्ट संकेत मिलता है कि चालू अपवर्ड ट्रेन्ड की चाल दबली हो सकती है।
शेअर्स खरीदने वालो की उसमें रूचि कम हुई नजर आती है। यह पॅटर्न पूरा होने के बाद बाजार का ट्रेन्ड रिवर्स हो सकता है। इस के परिणाम से शेअर का भाव निचे आ सकता है। इस पॅटर्न का आकार अंग्रेजी मुलाक्षर ‘एम’ (M) जैसा होता है।
इस पॅटर्न के पहले विभाग में शेअर्स के भाव में सुधार होता है और नया टॉप तैयार होता है। इस नए टॉप के पास पहुँचने के बाद उसे रेजिस्टन्स मिलता है। और नोक पर से वह भाव निचे आता है।
उसके बाद भाव घुमकर टॉप के आगे बढते हुए नजर आता है। इस स्तर पर फिर से बिक्री का दबाव शुरू होता है
और इस से भाव फिर से गिरकर निचे के स्तर पर आता है। इस शेअर्स का भाव उसकी नोक के भाव का स्तर छोडकर निचे उतरा तो पॅटर्न पूरा हुआ है ऐसा माना जाता है।
इस के साथ ही उसमें डाऊन ट्रेन्ड की शुरूआत होती है और शेअर्स के भाव गिरने का निर्देश मिलता है।
४. डबल बॉटम पॅटर्न (Double Bottom Pattern):
यह पॅटर्न डबल टॉप पॅटर्न के एकदम विरूद्ध दिशा में चलनेवाली पॅटर्न है। वह डाऊन ट्रेन्ड के अपट्रेन्ड में रिवर्सल होने का संकेत देती है। इस पॅटर्न की रचना अंग्रेजी मुलाक्षर ‘डब्ल्यू’ (W) की तरह होती है।
सपोर्ट पर आने से शेअर्स के भाव में होनवाली गिरावट रूक जाती है तब नया बॉटम तैयार होता है। यहा से शेअर का भाव बढता है। उसके बाद रेजिस्टन्स पर आकर शेअर्स का भाव फिर से घूमकर गिरते हए नजर आता है और फिर स सपोर्ट पर आने के बाद भाव बढ़ता है।
शेअर्स का भाव बढकर जब पहले के रेजिस्टन्स पर जाता है तब यह पॅटर्न पूरा हुआ ऐसा माना जाता है। इसके साथ ही उसमें अपट्रेन्ड की शुरूआत होती है और शेअर्स के भाव बढने का निर्देश मिलता है।
५. सिमेट्रिकल ट्रायेन्गल पॅटर्न (Symmetrical Triangle Pattern):
सिमेट्रिकल ट्रायेन्गल पॅटर्न कन्टिन्युएशन पॅटर्न है। यह पॅटर्न शेअर्स के भाव एक ही रेंज में मजबूत स्थिति तैयार करने का निर्देश देता है। पहले के ट्रेन्ड की फिर से शुरूआत होने पर यह पॅटर्न तैयार होता है।
रेजिस्टन्स की निचे उतरी हुई लाईन और सपोर्ट की उपर चढी हुई लाईन के बिच में इस पॅटर्न की रचना होती है।
इस पॅटर्न की रचना में दिखाई देनेवाली दो ट्रेन्ड लाईन का स्लोप होता है और वह एक पॉईन्ट पर एकत्रित होती है। इस दो ट्रेन्ड लाईन के रेंज के बाहर भाव जाने पर ही यह पॅटर्न पूरा हआ ऐसा
माना जाता है। इसे ब्रेक आऊट कहा जाता है और यह ब्रेक आऊट उपर या निचे की दिशा में होता है।
यह रेंज छोडकर भाव उपर या निचे जाता है तब व्हॉल्यूम में बढोतरी हुई या नहीं इस पर ट्रेडर ने ध्यान देना चाहिए।
६. असेंडिंग ट्रायेन्गल पॅटर्न (Ascending Triangle Pattern):
असेंडिंग ट्रायेन्गल पॅटर्न ऐसा निर्देश देता है कि पॅटर्न पूरा होने के बाद शेअर्स का भाव बढेगा। दो ट्रेन्ड लाईन से इस पॅटर्न की रचना होती है।
उनमें से एक स्तर (फ्लॅट) ट्रेन्डलाईन होती है। जो रेजिस्टन्स का काम करती है और एक चढाँव वाली ट्रेन्डलाईन होती है जो सपोर्ट का काम करती है।
इस ट्रेन्डलाईन में चलनेवाले शेअर्स का भाव अंत में इस रेंज में से निकलकर उपर की दिशा में आगे बढता है। यह पॅटर्न शुरू होने से पहले निश्चित रूप से अपवर्ड ट्रेन्ड शुरू हुआ है ऐसा नजर आता है।
इस तरह से वह एक कन्टीन्युएशन पॅटर्न बनता है। इस प्रकार की पॅटर्न डाऊन ट्रेन्ड में भी देखने मिलती है।
रेजिस्टन्स पर भाव जाने के बाद यह पॅटर्न पूरा हआ ऐसा माना जाता है। यह ब्रेक आऊट आने के बाद याने की प्रतिकार स्तर के उपर भाव जाने के बाद व्हॉल्यूम पर नजर रखनी पडती है।
७. डिसेंडिंग ट्रायेन्गल पॅटर्न (Descending Triangle Pattern):
डिसेंडिंग ट्रायेन्गल पॅटर्न एक मंदी का पॅटर्न है। यह पॅटर्न पूरा होने के बाद शेअर्स के भाव गिरते हुए दिखाई देते है।
यह पॅटर्न असेंडिंग ट्रायेन्गल पॅटर्न के एकदम विरूद्ध दिशा में कार्य करता है। उसमें एक फ्लॅट ट्रेन्ड लाईन होती है। जो सपोर्ट का काम करती है और एक उतारने वाली ट्रेन्डलाईन होती है जो रेजिस्टन्स का काम करती है।
इस ट्रेन्ड लाईन में चलनेवाले शेअर्स का भाव अंत में इस रेंज में से निकलकर निचे जाता है। यह पॅटर्न शुरू होने से पहले निश्चित रूप से डाऊन ट्रेन्ड शुरू होता है ऐसा नजर आता है। इस तरह से वह एक कन्टीन्युएशन पॅटर्न बनता है।
सपोर्ट के निचे भाव जाने के बाद यह पॅटर्न पूरा हुआ ऐसा माना जाता है। यह ब्रेक आऊट आने के बाद व्हॉल्यूम पर नजर रखनी पडती है।
८. फ्लॅग पॅटर्न (Flag Pattern):
फ्लॅग पॅटर्न और पेनन्ट पॅटर्न दो कन्टीन्यूएशन पॅटर्न है। यह दोनों पॅटर्न एक दुसरे जैसे दिखनेवाले पॅटर्न है। मगर कन्सॉलिडेशन फेज के वक्त उनके आकार में थोडा बहुत अंतर नजर आता है।
फ्लॅग पॅटर्न में लंबा चौरस आकार तैयार होता है और पेनन्ट पॅटर्न में जादातर त्रिकोण आकार तैयार होता है।
दो समांतर ट्रेन्ड लाईन की मदद से फ्लॅग पॅटर्न की रचना की जाती है। यह दोनों ट्रेन्ड लाईन सपोर्ट और रेजिस्टन्स का काम करती है।
शेअर्स का भाव उनके रेजिस्टन्स या सपोर्ट रेंज को छोडकर बाहर निकलता है तब दो समांतर लाईनों से फ्लॅग पॅटर्न की रचना होती है।
साधारण रूप से फ्लॅग पॅटर्न पूरी तरह से फ्लॅट होते हुए नजर नहीं आता है। परंतु उसके ट्रेन्ड लाईन में थोडी ढलान होती है। यह बात निचे दिए चार्ट में दिखाई गई है।
साधारण तौर पे शुरूआत में दिखनेवाले भाव के तिव्र बढोतरी-घटाँव की दिशा के बिल्कुल विपरीत दिशा में फ्लॅग पॅटर्न की ढलान आगे बढ़ते हुए नजर आती है। आरंभ में शेअर्स के भाव में सधार दिखने पर भी फ्लॅग निचे की दिशा में ढलते हए नजर आता है।
भाव सपोर्ट अथवा रेजिस्टन्स की रेंज में से निकलकर एकबार बाहर आया तो फिर बिक्री या खरीदी करने के संकेत मिलते है।
उसके साथ ही पहले की दिशा में सिक्योरिटीज की ट्रेन्ड पहले की तरह ही आगे बढती है। रेंज तोडने की यह प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसका व्हॉल्यूम अधिक होना जरूरी होता है।
९. पेनन्ट पॅटर्न (Pennant Pattern):
पेनन्ट पॅटर्न एक समत्रिकोण रचना जैसा दिखनेवाला पॅटर्न है। इस त्रिकोण में सपोर्ट और रेजिस्टन्स की ट्रेन्ड लाईने एक दुसरे को मिलती है।
इस पॅटर्न में शेअर के भाव का बार बार सपोर्ट या रेजिस्टन्स लाईन पर आते हुए नजर आता है। फ्लॅग पॅटर्न में दिशा (डायरेक्शन) का जितना महत्व होता है उतना महत्व पेनन्ट पॅटर्न में नहीं होता है क्योंकि पेनन्ट पॅटर्न साधारण तौर पर फ्लॅट पॅटर्न है।
फ्लॅग पॅटर्न या पेनन्ट पॅटर्न से पहले भाव की बढोतरी या घटाव बहुत ही तिव्र होता है ऐसा नजर आता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस पॅटर्न में भी
शेअर्स का भाव रेंज के बाहर निकलने के बाद उसका व्हॉल्यूम कितना है इस पर नजर रखनी चाहिए।
१०. वेज पॅटर्न (Wedge Pattern) :
वेज पॅटर्न एक रिवर्सल पॅटर्न है। वेज पॅटर्न में जो टेन्ड बनता है उसकी दिशा रिवर्स होने के संकेत मिलते है। वेज पॅटर्न त्रिकोणीय पॅटर्न जैसा दिखता है।
उसमें भी दो ट्रेन्ड लाईन होती है। इन दो ट्रेन्ड लाईन में से एक ट्रेन्ड लाईन सपोर्ट और दुसरी ट्रेन्ड लाईन रेजिस्टन्स की होती है और शेअर का भाव ईन दोनों लाईन के बिचमें घूमता रहता है। यह पॅटर्न दिर्घकालीन पॅटर्न है।
यह पॅटर्न साधारण रूप से ३-६ महिनों तक चलता है ऐसा नजर आता है। इसमें भी दो ट्रेन्ड लाईन एक दुसरे को मिली हुई नजर आती है। यह दोनों ट्रेन्ड लाईने ढलानवाली याने की उपर की दिशा में चढनेवाली या निचे की दिशा की ओर उतरनेवाली होती है।
वेज पॅटर्न दो प्रकार के होते है। एक वेज पॅटर्न निचे की तरफ ढलानवाला (Falling Wedge Pattern) होता है और दुसरा उपर की तरफ में बढनेवाला वेज पॅटर्न (Rising Wedge Pattern) होता है।
निचे की दिशा में ढलनेवाला वेज पॅटर्न साधारण रूप से तेजी का निर्देश देता है। इस वेज पॅटर्न रेंज के बाहर निकलकर भाव आगे बढने लगा तो उसमें अपट्रेन्ड शुरू होने के निर्देश मिलता है।
इस पॅटर्न में दोनों ट्रेन्ड लाईने एक दुसरे से मिलती है ऐसा नजर आता है। भाव में जब डाउन ट्रेन्ड होता है तब इस प्रकार की ट्रेन्ड लाईन निचे की तरफ उतरते हए नजर आती है।
घटाव दर्शानेवाले वेज पॅटर्न के बारे में दुसरी ध्यान रखने लायक बात यह है कि रेजिस्टन्स दर्शानेवाली ट्रेन्ड लाईन का उतार (स्लोप) सपोर्ट दर्शानेवाली ट्रेन्ड लाईन के उतार की तुलना में अधिक तिव्र होता है।
वेज पॅटर्न में दिखनेवाले भाव के उतार-चढाँव में वेज पॅटर्न के अस्तित्व के समय के दरम्यान कम से कम दो बार शेअर का भाव रेजिस्टन्स ट्रेन्ड लाईन और सपोर्ट ट्रेन्ड लाईन तक पहुँचना ही चाहिए। जितनी जादा बार शेअर का भाव रेजिस्टन्स को स्पर्श करता है उतना अच्छा चार्ट तैयार होता है।
भाव उपर के रेजिस्टन्स को छोडकर आगे बढता है तो शेअर्स में खरीदी करने का संकेत मिलता है।
जब यह भाव रेजिस्टन्स को छोडकर आगे निकल जाता है तब बाजार में उस शेअर्स का व्हॉल्यूम बहुत ही बढा हुआ होना जरूरी होता है। यह पॅटर्न बहुत ही दिर्घकालीन पॅटर्न होने के कारण भाव लगातार रेजिस्टन्स लाईन के उपर बंद होना आवश्यक होता है।
उपर की दिशा में बढनेवाला वेज पॅटर्न साधारण रूप से मंदी का निर्देश देता है। अगर इस वेज पॅटर्न के रेंज के बाहर भाव निकल गया तो उसमें डाऊन ट्रेन्ड शुरू होने का निर्देश मिलता है।
इस पॅटर्न में दोनों ट्रेन्ड लाईने एक दुसरे से मिलती है ऐसा दिखाई देता है। भाव में अपट्रेन्ड होता है तब इस तरह की ट्रेन्ड लाईन उपर की दिशा में जाता हुई दिखता है।
बढोतरी दर्शानेवाले वेज पॅटर्न के बारे में दुसरी ध्यान रखने लायक बात यह है कि सपोर्ट दर्शानेवाली ट्रेन्ड लाईन की बढाई (Upward Slope) यह रेजिस्टन्स दर्शानेवाली ट्रेन्ड लाईन की बढाई की तुलना में अधिक तिव्र दिखाई देती है।
वेज पॅटर्न में दिखनेवाले भाव के उतार-चढाँव में वेज पॅटर्न के अस्तित्व के समय के दरम्यान कम से कम दो बार भाव रेजिस्टन्स ट्रेन्ड लाईन और सपोर्ट ट्रेन्ड लाईन तक पहुँचना चाहिए। जितनी जादा बार शेअर का भाव सपोर्ट को स्पर्श करता है उतना अच्छा चार्ट तैयार होता है।
भाव सपोर्ट को छोडकर निचे गिरता है तब शेअर्स में बिक्री करने का संकेत मिलता है। जब भाव गिरता है तब बाजार में उस शेअर्स का व्हॉल्यूम बहुत ही बढा होना जरूरी होता है।
कॅन्डल स्टीक पॅटर्न (Candlestick Patterns):
कॅन्डल स्टीक पॅटर्न सिखने की शुरूआत करे उससे पहले हम कॅन्डल स्टीक की प्राथमीक जानकारी जान लेते है। निचे की आकृती में कॅन्डल स्टीक पॅटर्न के दो प्रकार दर्शाए गए है।
एक हॉलो कॉन्डल (सफेद रंग) और दुसरा भरा हुआ कॉन्डल (काले रंग) का होता है। इस भाग को बॉडी के नाम से जाना जाता है।
वह खुले और बंद भाव दर्शाते है। उपर और निचे की तरफ वाली पतली लंबी लाईन को रॉडो या टेल के नाम से जाना जाता है। वह लाईन दिन का ऊँचा और निचा भाव दिखाती है।
सफेद कॅन्डल तेजी का संकेत देता है क्योंकि उस समय में शेअर्स के भाव में बढोतरी होती है अर्थात शेअर्स का भाव उसके खुलने के भाव की तुलना में अधिक भाव से बंद होता है। कुछ चार्ट-सॉफ्टवेअर्स में तेजी के कॅन्डल का रंग सफेद के बदले हरा दिखाया जाता है।
उसी तरह से काला कॅन्डल मंदी का संकेत देता है क्योंकि उस समय में शेअर्स के भाव में गिरावट होती है अर्थात शेअर्स का भाव उसके खुलने के भाव की तुलना में कम भाव से बंद होता है। कुछ चार्ट सॉफ्टवेअर्स में मंदी के कॅन्डल का रंग काले रंग के बदले लाल रंग से दिखाया जाता है।
जपान के कॅन्डल स्टीक ट्रेडिंग पॅटर्न में ४० से भी अधिक रिवर्सल और कन्टीन्यूएशन चार्ट पॅटर्न का समावेश होता है।
इन चार्ट पॅटर्न में से कई महत्व के पॅटर्न है और उनके विषय में आपको जानकारी होनी जरूरी है। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण पॅटर्न की जानकारी निचे दी गई है।
१. दोजी (Doji):
खुला और बंद भाव जब एक समान होते है तब दोजी की रचना होती है। (खुला और बंद भाव समान होना यह एक आदर्श स्थिति है मगर हर बार वह एक समान होना जरूरी नहीं है।) उपर की दिशा में और निचे की दिशा में होनेवाली लाईन की लंबाई कम जादा हो सकती है।
दोजी अनिर्णायकता की स्थिति को दर्शाता है। दिन के दरम्यान शेअर्स में उसके खुलने के भाव की तुलना से अधिक या कम भाव से ट्रेडिंग हुई परंतु शेअर्स का बंद भाव उसके खुलने के भाव के एकदम नजदिक आया होता है।
इसका अर्थ यह होता है कि बजार में खरीदी या बिक्री करनेवालों में से एक भी पक्ष अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सका। इस कारण बाजार में अनिर्णायकता की स्थिति तैयार होती है और नजदिक के समय में शेअर्स का ट्रेन्ड बदलने का उससे निर्देश मिलता है।
दोजी स्वयं एक न्यूट्रल पॅटर्न है। दोजी वर्तमान ट्रेन्ड के अनुसंधान में बाजार रिवर्स – उलटी दिशा में आने का संकेत भी दे सकता है। इसके साथ ही
भविष्य में हर किसी शेअर्स का भाव कौन से स्तर पर जा सकता है इसका एकदम निश्चित अंदाजा भी दे सकता है। साथ ही चार्ट में दोजी की रचना होती है तब बाजार के खिलाडियों की पहले की स्थिति कैसी थी इस पर भी ध्यान रखना पड़ता है।
शेअर्स में अपट्रेन्ड होता है अथवा रेजिस्टन्स के स्तर पर दोजी की रचना होती है तो इसका अर्थ यह होता है कि खरीदी का दबाव घटना शुरू हुआ है।
इसलिए अपट्रेन्ड का अंत भी नजदिक आया है ऐसा दिखाई पडता है। दोजी की रचना होने के बाद मंदी की शुरूआत होने में और भी कई बातों का समर्थन मिलना आवश्यक होता है।
इसी तरह से शेअर्स में जब डाऊन ट्रेन्ड होता है अथवा सपोर्ट के स्तर पर दोजी की रचना होती है इसका अर्थ यह होता है कि बिक्री का दबाव घटना शुरू हुआ है।
इसलिए डाऊन ट्रेन्ड का अंत नजदिक आया है ऐसा दिखाई पडता है। दोजी की रचना होने के बाद तेजी की शुरूआत होने केलिए और भी कई बातों का समर्थन मिलना आवश्यक होता है।
दोजी यह जोड (प्लस), क्रॉस या इनवर्टेड क्रॉस के आकार जैसा दिख सकता है।
दोजी के तिन प्रकार होते है।
- लंबे पैरवाले दोजी पॅटर्न (Long-Legged Doji)
- ड्रॅगनफ्लाय दोजी (Dragonfly Doji)
- ग्रेव्हस्टोन दोजी (Grave stone Doji)
लंबे पैरवाले दोजी पॅटर्न (Long-Legged Doji):
लंबे पैरवाले दोजी पॅटर्न में उपर और निचे की तरफ का शडो बहुत ही लंबा होता है और उसकी लंबाई लगभग एक जैसी होती है।
इस प्रकार के दोजी की रचना होने के बाद ऐसा निर्देश मिलता है कि दिन के दरम्यान शेअर्स के भाव में बहुत उतार-चढाँव आया लेकीन बंद भाव उसके शुरुआती भाव के पास आ गया। यह स्थिति शेअर्स में बडे पैमाने पर अनिर्णायकता होने का निर्देश देती है।
दुसरी बात यह की कम कालावधी में शेअर्स के ट्रेन्ड में बदलाव आने की सभांवना को भी वह दर्शाते है।
ड्रॅगनफ्लाय दोजी (Dragonfly Doji):
शेअर्स का बंद और खुला भाव यह दिन के दरम्यान ऊँचे से ऊँचे स्तर पर आया तो ड्रॅगनफ्लाय दोजी की रचना होती है।
इस में निचले भाव के कारण निचे की दिशा में लबें शडो की रचना होती है। इस में ऊपर की दिशा में कोई भी शडो नहीं होती। ड्रॅगनफ्लाय दोजी अंग्रेजी मुलाक्षर ‘टी’ (T) जैसा दिखता है।
ड्रॅगनफ्लाय दोजी ऐसा निर्देश देता है कि दिन की शुरूआत में शेअर्स में बिक्री करनेवालो के वर्चस्व से भाव निचे आ गए थे लेकिन दिन के अंत में खरीदी करनेवालो की संख्या बढने से शेअर्स के भाव बढकर शुरुआती भाव के बराबरी पर आ गया।
इसीलिए शेअर्स का बंद भाव और खुला भाव दिन के दरम्यान ऊँचे से ऊँचे स्तर पर आते है और शेअर्स की ट्रेन्ड बदलने का निर्देश मिलता है।
ग्रेव्हस्टोन दोजी (Gravestone Doji):
शेअर्स का बंद भाव और खुला भाव यह दिन के दरम्यान सबसे निचे के स्तर पर आया तो ग्रेव्हस्टोन दोजी की रचना होती है।
इस में ऊँचे भाव के कारण उपर की दिशा में लंबे शडो की रचना होती है। इस में निचे की दिशा में कोई भी शडो नहीं होती है। ग्रेव्हस्टोन दोजी की रचना उलटे ‘टी’ (T) जैसे दिखती है।
ग्रव्हस्टोन दोजी ऐसा निर्देश देता है कि दिन की शुरूआत में शेअर्स को खरीदने वालो के प्रभाव से भाव बढकर उपर जाता है परंतु दिन के अंत में बिक्री करनेवालो का प्रभाव बढ़ने के कारण शेअर्स का भाव गिरकर खुले भाव के करीब आता है।
इस कारण से शेअर्स का बंद भाव और खुला भाव दिन के दरम्यान सबसे निचे के स्तर पर आते है और शेअर्स की ट्रेन्ड बदलने का निर्देश मिलता है।
२. बुलीश एन्गल्फिंग पॅटर्न (Bullish Engulfing Pattern):
बुलीश एन्गल्फिंग पॅटर्न एक रिवर्सल पॅटर्न है। डाऊन ट्रेन्ड के अंत में अथवा अपट्रेन्ड के करेक्शन में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से सपोर्ट के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
कुछ समय केलिए भाव में गिरावट होने के बाद एक छोटी सी काले या लाल रंग की कम व्हॉल्यूम वाली कॅन्डल दिखाई देती है (पहले दिन)।
दुसरे दिन शेअर्स का भाव नए निचे के स्तर पर खुलता है (पहले के दिन के बंद भाव के निचे) और उसके बाद बढता है।
यह भाव बढते ही व्हॉल्यूम बढा हुआ नजर आता है और अंत में उसका भाव पहले के दिन के खुले भाव के स्तर पर जाकर बंद होता है। इस से लंबी सफेद कॅन्डलस्टीक की रचना होती है।
दुसरे शब्दों में बताना हो तो दुसरे कॅन्डल की बॉडी (सफेद कॅन्डल) पहले कॅन्डल (काले कॅन्डल) को पूरी तरह से अपने में समा लेती है।
इस का अर्थ यह होता है कि खरीदी का प्रभाव बिक्री के दबाव से कई जादा है। इस स्थिति में वर्तमान ट्रेन्ड में परिवर्तन याने शेअर्स में तेजी की संभावना दिखाई देती है।
बाद के दिन में शेअर्स का भाव स्तर पर बंद हुआ तो बाजार में बुलिश रिवर्सल पॅटर्न तैयार होने का स्पष्ट निर्देश मिलता है।
३. बेअरीश एन्गल्फिंग पॅटर्न (Bearish Engulfing Pattern):
बेअरीश एन्गल्फिंग पॅटर्न एक बेअरीश (मंदी) का रिवर्सल पॅटर्न है। शेअर्स में अपट्रेन्ड अथवा डाऊन ट्रेन्ड के पुलबॅक रॅली में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह रेजिस्टन्स के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
कुछ समय केलिए भाव में बढोतरी होने के बाद एक छोटी सफेद या हरे रंग की कम व्हॉल्यूमवाली कॅन्डल दिखती है (पहले दिन) ।
दुसरे दिन शेअर्स का भाव नए ऊँचे स्तर पर (पहले के दिन के बंद भाव के ऊपर) खुलता है और फिर भाव गिरने लगता है।
यह भाव गिरते ही व्हॉल्यूम बढता हुआ नजर आता है और अंत में शेअर्स का भाव पहले के दिन के खुलने के भाव के निचे के स्तर पर बंद होता है। इस से लंबे काले या लाल कॅन्डल की रचना होती है।
दुसरे शब्दों में बताना हो तो दुसरे कॅन्डल की आकृती पहले कॅन्डल को पूरीतरह से समालेती है। इसका अर्थ ऐसा होता है कि बिक्री का दबाव खरीदी के दबाव से कई गुना जादा है।इस स्थिति में वर्तमान ट्रेन्ड में परिवर्तन याने शेअर्स में मंदी की संभावना दिखाई देती है।
४. डार्क क्लाऊड कवर पॅटर्न (Dark Cloud Cover Pattern):
डार्क क्लाऊड कवर एक बेअरीश (मंदी) का रिवर्सल पॅटर्न है। शेअर्स में अपट्रेन्ड अथवा डाऊन ट्रेन्ड के पुलबॅक रॅली में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह रेजिस्टन्स के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है। यह दो कॅन्डल का पॅटर्न है।
इस पॅटर्न में पहले दिन लंबे सफेद या हरे रंग के कॅन्डल की रचना होती है। दुसरे दिन लंबे काले कॅन्डल की रचना होती है।
दुसरे दिन, भाव पहलेवाले दिन के ट्रेडिंग रेंज से ऊँचे स्तर पर खुलता है और बादमें एकाएक गिरता है और पहलेवाले दिन के सफेद कॅन्डल के बिच में से (मध्य) जाकर बंद होता है।
उस दिन के बाद भी शेअर्स के भाव में गिरावट चालू रही और अधिक व्हॉल्यूम के साथ निचे के स्तर पर भाव बंद हुआ तो उस शेअर्स में बेअरीश रिवर्सल होने के निर्देश मिलते है।
५. पिअर्सिग पॅटर्न (Piercing Pattern Pattern):
पिअर्सिग लाईन एक बुलीश रिवर्सल पॅटर्न है। यह दो कॅन्डल का पॅटर्न है। डाऊन ट्रेन्ड के अंत में अथवा अपट्रेन्ड के करेक्शन में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से सपोर्ट के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
इस पॅटर्न में पहले दिन लंबे काले या लाल रंग की कॅन्डल की रचना होती है। दुसरे दिन लंबे सफेद कॅन्डल की रचना होती है।
दुसरे दिन शेअर्स का भाव पहले दिन के ट्रेडिंग रेंज के भाव के निचे खुलता है और बादमें एकाएक बढता है और पहले के दिन के काले कॅन्डल के बिच में (मध्य) जाकर बंद होता है।
उस दिन के बाद भी शेअर्स के भाव में बढोतरी चालू रही और अधिक व्हॉल्यूम के साथ उपर के स्तर पर बंद हुई तो उस शेअर्स में बुलीश रिवर्सल होने का निर्देश मिलता है।
६. हॅमर पॅटर्न (Hammer Pattern):
हॅमर एक बुलीश रिवर्सल पॅटर्न है। डाऊन ट्रेन्ड के अंत में अथवा अपट्रेन्ड के करेक्शन में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से सपोर्ट के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
जब भाव में डाऊन ट्रेन्ड होता है तब दिन में बाजार खुलने के बाद शेअर्स में एकाएक बिक्री का दबाव आता है मगर ट्रेडिंग शेशन बंद होने से पहले गिरा हुआ भाव फिर से बढ़ता है और सबसे ऊँचे स्तर पर बंद होता है।
इस स्थिति में थोडा बहुत ऐसा निर्देश मिलता है कि शेअर्स में तेजी आनेवाली है। जिससे उस दिन के बाद तेजी के मजबूत कॅन्डल की रचना होकर हॅमर बुलीश रिवर्सल पॅटर्न की रचना होने का निर्देश मिलना जरूरी होता है।
उसके बाद के दिन में सिक्योरिटीज उपर की दिशा में गॅप में खुलने के बाद अधिक व्हॉल्यूम के साथ लंबे सफेद कॅन्डल की रचना होना जरूरी होता है।
७. हॅगिंग मॅन पॅटर्न (Hanging Man Pattern):
हॅगिंग मॅन पॅटर्न एक बेअरीश रिवर्सल पॅटर्न है। शेअर्स में अपट्रेन्ड अथवा डाऊन ट्रेन्ड के पुलबॅक रॅली में इस पॅटर्न की रचना होती है।
हँगिंग मॅन पॅटर्न में शेअर जिस भाव में खला होता है उस से बहुत निचे के स्तर पर भाव आया हआ नजर आता है। इसके बाद उसमें सुधार शुरू होता है
और भाव बढकर दिन के अंत में सबसे ऊँचे स्तर के करीब पहुँच जाता है। निचे की तरफ लंबी रॉडो ऐसा संकेत देती है कि शेअर्स में बिक्री का दबाव
शुरू हो सकता है। दिन के अंत से पहले तेजी के खिलाडी इस परिस्थिति पर नियंत्रण पाते है और शेअर्स के भाव को ऊँचाई पर ले जाते है मगर पहले आया हुआ बिक्री का दबाव थोडी चिंता निर्माण करता है।
तीसरे दिन भाव निचे की दिशा में गॅप में खुला और एक लंबी काली या लाल कॅन्डल की रचना हुई तो बेअरीश रिवर्सल का संकेत मिलता है। इस वक्त खास करके व्हॉल्यूम का बढना जरूरी होता है।
८. मॉर्निग स्टार पॅटर्न (Morning Star Pattern):
मॉर्निग स्टार एक बुलीश रिवर्सल पॅटर्न है। डाऊनट्रेन्ड के अंत में अथवा अपट्रेन्ड के करेक्शन में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से सपोर्ट के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
मॉर्निंग स्टार पॅटर्न तीन कॅन्डल स्टीक से बना होता है।
- वर्तमान डाऊन ट्रेन्ड को बढानेवाली, लंबी काली या लाल कॅन्डल।
- पहले की कॅन्डल के निचे गॅप में खुलनेवाली छोटी कॅन्डल।
- गॅप में खुलनेवाली लंबी सफेद या हरे रंग की कॅन्डल जिसका भाव पहले के दिन के काले कॅन्डल के मध्य भाग पर जाकर बंद होता है।
डाऊन ट्रेन्ड के चलते या अपट्रेन्ड के करेक्शन में लंबी काले या लाल कॅन्डल ऐसा संकेत देता है कि बाजार में बिक्री करनेवालो का दबाव है।
जब गॅप में दुसरे कॅन्डल की रचना होती है तब आगे की बिक्री के दबाव का वह संकेत देता है। पर भाव में होनेवाली गिरावट वैसे ही आगे चालू नहीं रहती।
वह धिरे धिरे कम होती जाती है और छोटे कॅन्डल की रचना होती है। छोटी कॅन्डल बिक्री का दबाव कम हो रहा है इसका संकेत देती है। इससे डाऊनट्रेन्ड दुबली होने का और बाजार में रिवर्सल आने का निर्देश मिलता है।
तीसरे दिन लंबे सफेद कॅन्डल की रचना होती है। जिसका भाव पहले दिन के काले कॅन्डल के बिच में जाकर बंद होता है। वह बुलीश रिवर्सल का संकेत देते है। तब व्हॉल्यूम भी बढा होता है।
९. ईवनिंग स्टार पॅटर्न (Evening Star Pattern):
ईवनिंग स्टार एक बेअरीश रिवर्सल पॅटर्न है। शेअर्स में अपट्रेन्ड अथवा डाऊनट्रेन्ड के पुलबॅक रॅली में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से रेजिस्टन्स के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
ईवनिंग स्टार पॅटर्न पॅटर्न तीन कॅन्डल स्टीक से बना होता है।
- लंबी सफेद या हरी कॅन्डल।
- पहले के कॅन्डल के उपर गॅप में खुलनेवाली छोटी सफेद या काली कॅन्डल।
- गॅप में खुलनेवाली लंबी काली या लाल कॅन्डल जिसका बंद भाव पहलेवाले दिन के सफेद या हरे कॅन्डल के बिच में निचे जाकर बंद होता है।
शेअर्स में अपट्रेन्ड हो या डाऊनट्रेन्ड के पुलबॅक रॅली के दरम्यान एकाएक शेअर्स के भाव में बढत हुई तो उससे तैयार होनेवाली सफेद कॅन्डल ऐसा संकेत देती है कि बाजार में तेजी के खिलाडियों का वर्चस्व है।
दुसरे दिन शेअर्स का भाव उपर के गॅप में खुलता है पर बाद में भाव नहीं बढता और एक छोटे कॅन्डल की रचना होती है।
इससे ऐसा निर्देश मिलता है कि तेजी के खिलाडियों का वर्चस्व कम होने लगा है। तेजी की यह चाल दुबली हो रही है और वर्तमान ट्रेन्ड रिवर्स होने की संभावना होती है।
तीसरे दिन भाव निचे की दिशा में गॅप में खुलता है और फिर और भी निचे जाता है तब लंबे काले कॅन्डल की रचना होती है जिसका बंद भाव पहले दिनवाले सफेद कॅन्डल के मध्य भाग के निचे होता है।
इस प्रकार की स्थिति कॅन्डल चार्ट में तैयार होने के बाद बेअरीश रिवर्सल का संकेत मिलता है। तब खास करके व्हॉल्यूम में बढोतरी होना जरूरी होता है।
१०. शूटींग स्टार पॅटर्न (Shooting Star Pattern):
शूटींग स्टार पॅटर्न एक बेअरीश रिवर्सल पॅटर्न है। शेअर्स में अपट्रेन्ड अथवा डाऊनट्रेन्ड के पुलबॅक रॅली में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से रेजिस्टन्स के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
शेअर्स में मजबूत तेजी होती है तब बाजार खुलने पर शेअर्स के भाव में बहुत ही सुधार हुआ नजर आता है पर दिन के अंतिम भाग में शेअर्स का भाव घुमकर उसके निचे के स्तर पर जाकर बंद होता है।
ऐसी परिस्थिति में थोडा बहुत ऐसा निर्देश मिलता है कि बिक्री करनेवाले याने की मंदी के खिलाडियों ने बाजार का नियंत्रण अपने हाथ में लेना शुरू किया है।
दुसरे दिन मंदी की मजबूत कॅन्डल की रचना हुई तो इस बात को समर्थन मिलता है। भाव निचे की दिशा में गॅप में खुलता है और मजबूत व्हॉल्यूम के साथ काले कॅन्डल पॅटर्न की रचना होती है।
११. इनवर्टेड हॅमर पॅटर्न (Inverted Hammer):
इनवर्टेड हॅमर पॅटर्न एक बुलीश रिवर्सल पॅटर्न है। डाऊनट्रेन्ड के अंत में अथवा अपट्रेन्ड के करेक्शन में इस पॅटर्न की रचना होती है। उसी तरह से सपोर्ट के स्तर पर भी इस पॅटर्न की रचना हो सकती है।
इनवर्टेड हॅमर पॅटर्न की रचना होने के लिए शेअर्स का खुला भाव बहुत ही ऊँचे स्तर पर होना जरूरी है। उसके बाद दिन के अंत से पहले उसका भाव सबसे निचे के भाव के स्तर पर आया हुआ नजर आता है।
इस से उपर की दिशा में लंबी रॉडो की रचना होती है। यह रॉडो ऐसा निर्देश देता है कि तेजी के खिलाडियों ने बाजार में प्रवेश करना आरंभ किया है।
मंदी के खिलाडियों ने भाव को उसके पहले के निचे के स्तर पर तोडने में कामयाबी हासिल की है पर तेजी के खिलाडियों ने बाजार में प्रवेश करने केलिए आरंभ किया है। यह मंदी के खिलाडियों केलिए खतरे की घंटी होती है।
दूसरे दिन शेअर्स का भाव उपर की दिशा में गॅप में खुलता है जिससे लंबे सफेद कॅन्डल की रचना होती है।
इस प्रकार की स्थिति कॅन्डल चार्ट में तैयार होने के बाद बुलिश रिवर्सल का संकेत मिलता है। इस समय खास करके व्हॉल्यूम में बढत होना जरूरी होता है।
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टेक्निकल इंडिकेटर्स (Technical Indicators):
टेक्निकल अॅनालिसीस में कई इंडिकेटर्स होते है परंतु बाजार में ट्रेडिंग केलिए उपयोग में आनेवाले हर इंडिकेटर्स की जानकारी आपको होना जरूरी नहीं है क्योंकि सभी का अभ्यास करने गए तो आप जरूर भ्रमित हो जाएंगे।
ऐसी स्थिति में आपके चुने हुए इंडिकेटर्स को पकडकर उसकी जानकारी हासिल कीजिए। टेक्निकल एनालिसीस में उपयोग किए जानेवाले कई महत्व के इंडिकेटर्स की जानकारी निचे दी है।
- बोलिंगर बॅन्ड (Bollinger Bands)
- एमएसीडी (MACD)
- आरएसआय (RSI)
- स्टोकेस्टिक (Stochastics)
नोट (Note):
टेक्निकल एनालिसीस की गिनती की जटिलता में आपको उतरने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि आजकल सभी गिनतीयाँ कॉम्प्युटर पर की जाती है।
ट्रेडिंग के लिए आए हुए सभी सॉफ्टवेअर्स में यह सभी इंडिकेटर्स पहले से लोड किए होते है। ट्रेडर को मात्र उन की जानकारी होना आवश्यक है।
१. बोलिंगर बॅन्ड (Bollinger Bands):
बोलिंगर बॅन्ड इंडिकेटर जॉन बोलिंगर ने सन् १९८० में विकसित किया था। यह टेक्निकल एनालिसीस के लिए उपयोग में आने वाला एक बहुत ही प्रसिद्ध इंडिकेटर है। ट्रेडिंग बॅन्ड के विचार के आधार पर यह सिस्टम विकसित किया गया है।
बोलिंगर बॅन्ड में निचे बाताई गई बातों का समावेश होता है।
- एन (N) कालावधी की सिंपल मुव्हींग एवरेज का मिडल बॅन्ड
- अपर बॅन्ड (मिडल बॅन्ड के उपर के (K) X एन (N) कालावधी की स्टॅन्डर्ड डिविएशन की लाईन)
- लोअर बॅन्ड (मिडल बॅन्ड के निचे के (K) X एन (N) कालावधी की स्टॅन्डर्ड डिविएशन की लाईन)
‘एन’ और ‘के’ के निश्चित किए मूल्य अनुक्रम से २० और २ है।
शेअर्स का भाव कुछ दिन दोनों बॅन्ड में रहकर उपर के बॅन्ड को तोडकर उपर गया तो उस से ऐसा संकेत मिलता है कि शेअर्स का भाव और भी बढेगा और वह शेअर्स खरीदे जा सकते है।
उसी तरह से शेअर्स का भाव निचे के बॅन्ड को तोडकर निचे गया तो उस से ऐसा संकेत मिलता है कि शेअर्स का भाव और भी निचे जाएगा और ऐसे शेअर्स की बिक्री की जा सकती है।
कुछ ट्रेडर्स मिडल बॅन्ड याने की सिंम्पल मुव्हींग अॅवरेज का उपयोग करते है। शेअर्स का भाव मिडल बॅन्ड के उपर जाता है तब शेअर्स में खरीदी करते है और उसी तरह से जब शेअर्स का भाव मिडल बॅन्ड के निचे जाता है तब उस शेअर्स में बिक्री (शॉर्ट सेलिंग) करते है। निचे दिए चार्ट में बोलिंगर बॅन्ड का इंडिकेटर दिखाया गया है।
२. मुव्हींग एवरेज कन्वर्जन्स डायवर्जन्स – एमएसीडी (Moving Average Convergence Divergence – MACD):
मुव्हींग एवरेज कन्वर्जन्स डायवर्जन्स को ‘एमएसीडी’ के संक्षिप्त नाम से भी जाना जाता है। यह टेक्निकल एनालिसीस केलिए उपयोग में आनेवाला एक बहुत ही प्रसिद्ध इंडिकेटर है।
बहुत ही व्यापक प्रमाण में इसका उपयोग किया जाता है। सन् १९६० में गेराल्ड ओपेल ने इस इंडिकेटर को विकसित किया था।
एमएसीडी एक मोमेन्टम इंडिकेटर है जो दो मुव्हिंग एवरेज का संबंध दर्शाता है। एमएसीडी की गीनती करने के लिए २६ दिन के धिमें एक्सपोनेन्शियल मुव्हिंग ॲवरेज को सिग्नल लाईन कहके पहचाना जाता है।
शेअर्स कब खरीदने और बेचने चाहिए इसका संकेत यह सिग्नल लाईन देती है।एमएसीडी की लाईन सिग्नल लाईन के निचे आती है तब मंदी का संकेत मिलता है और शेअर्स में बिक्री या शॉर्ट सेलिंग की जा सकती है।
उसी तरह से एमएसीडी की लाईन सिग्नल लाईन के उपर आई तो तेजी का संकेत मिलता है और शेअर्स में खरीदी की जा सकती है। निचे दिए चार्ट में एमएसीडी का सिग्नल दिखाया गया है।
३. रिलेटिव्ह स्ट्रेन्थ ईन्डेक्स – आर.एस.आय (Relative Strength Index – RSI):
रिलेटिव्ह स्ट्रेन्थ ईन्डेक्स, इस इंडिकेटर को जे वेल्स विल्डर ने सन् १९७० में विकसित किया था। यह टेक्निकल एनालिसीस केलिए उपयोग में आनेवाला एक बहुत ही प्रसिद्ध इंडिकेटर है। यह एक मोमेन्टम अॅसिलेटर है।
आर.एस.आय की मदद से शेअर्स के भाव में कितनी बढोतरी या गिरावट हई है इसका अंदाजा मिलता है। इस जानकारी को ० से १०० के रेंज में तबदील किया होता है। आर.एस.आय का आंकडा ७० के उपर गया तो वह शेअर्स ओव्हर बॉट है ऐसा संकेत मिलता है।
उसी तरह से आर.एस.आय का आंकडा ३० के निचे गए तो वह शेअर्स ओव्हर सोल्ड है ऐसा संकेत मिलता है। आर.एस.आय केलिए सबसे अच्छी और लोकप्रिय कालावधी ९ से १४ दिनों की है।
४. स्टोकेस्टिक (Stochastics):
स्टोकेस्टिक इंडिकेटर जॉर्ज लेन ने सन १९५० में विकसित किया था। यह एक मोमेन्टम इंडिकेटर है।
स्टोकेस्टिक ॲसिलेटर को ० से १०० के स्केल पर जोडा जाता है। उसका उपयोग खरीदी और बिक्री का संकेत मिलने केलिए किया जाता है। शेअर्स ओव्हर बॉट या ओव्हर सोल्ड है इसका निर्देश वह देता है।
ट्रेक्निकल एनालिसीस के लिए दो स्टोकेस्टिक इंडिकेटर का उपयोग किया जाता है। वह (%K) जल्द इंडिकेटर और (%D) धीमा इंडिकेटर है।
%K अथवा %D का मूल्य ८० के उपर गया तो शेअर्स ओव्हर बॉट है ऐसा संकेत मिलता है। उसी तरह से वह २० की रेंज से निचे गया तो शेअर्स ओव्हर सोल्ड है ऐसा संकेत मिलता है।
%K क्रॉस करके %D लाईन के आर पार निकल जाता है तब उस में से खरीदी या बिक्री का संकेत भी लिया जाता है।
%K की लाईन %D की लाईन को उपर की तरफ से क्रॉस करती हो तब खरीदी का संकेत माना जाता है। इसी तरह से %K की लाईन %D के लाईन को निचे की तरफ से क्रॉस करके जाती हो तब बिक्री का संकेत माना जाता है। दिखाए गए चार्ट में स्टोकेस्टिक असिलेटर के संकेत का उदाहरण दिया गया है।
पिवट पॉईन्ट (Pivot Points):
पिवट पॉईन्ट एक ऐसा लेवल है कि जिस पर आकर बाजार स्वयं की दिशा बदलता है। सामान्य अंकगणित का और पहले के दिन का ऊँचा भाव निचे का भाव और बंद भाव के आधार पर श्रेणीबद्ध पॉईन्ट निकाले जाते है।
यह पॉईन्ट महत्व के सपोर्ट और रेजिस्टन्स लेवल बन सकते है।इन पॉईन्टस को पिवट लेवल के नाम से जाना जाता है। पिवट पॉईन्ट हासिल करने केलिए गिनती करने का तरीका निचे दिया है।
रेजिस्टन्स ३ = ऊँचा भाव + २ x (पिवट लेवल – निचे का भाव)
रेजिस्टन्स २ = पिवट + २ x (आर १ – एस १)
रेजिस्टन्स १ = २ x (पिवट लेवल – निचे का भाव)
पिवट पॉईन्ट = ऊँचा भाव + २ x (ऊँचा भाव + बंद भाव+निचे का भाव)/३
सपोर्ट १ = २ x (पिवट लेवल – ऊँचा भाव)
सपोर्ट २ = पिवट – ( आर १ – एस १)
सपोर्ट ३ = निचेका भाव – २ X ( ऊँचा भाव – पिवट)
नोट : आर = रेजिस्टन्स, एस = सपोर्ट
उपर दिखाए फार्मूले से आप समझ सकते है कि पहले दिन ऊपर का भाव, निचे का भाव और बंद भाव के आधार पर आप सात महत्वपूर्ण पॉईन्ट निकाल सकते है। (तीन रेजिस्टन्स, तीन सपोर्ट और एक पिवट पॉईन्ट) उनमें तीन महत्व के पॉईन्ट आर १, एस १ और पिवट पॉईन्ट होते है।
मार्केट पिवट पॉईन्ट के उपर खुला तो उस दिन तेजी की संभावना होती है। मार्केट पिवटल पॉईन्ट के निचे खुला तो उस दिन मंदी की संभावना होती है।
ट्रेडिंग में पिवट पॉईन्ट का उपयोग बाजार सपोर्ट या रेजिस्टन्स पर से वापस घुमता है या उसे तोडता है। मार्केट आर २, आर ३ अथवा एस २ या एस ३ पर पहुँचता है तब मार्केट ओव्हर बॉट या ओव्हर सोल्ड बना होता है।
इस लेवल का उपयोग बाजार में प्रवेश करने के बदले बाजार से बाहर निकलने के लिए किया जाना चाहिए।
निचे की आकृती में पिवोट पॉईन्ट और उसका उपयोग दिखाया गया है।
समर्थन पाने का सिद्धांत (Principle of Confirmation):
टेक्निकल अनालिसीस के आधार पर तारण निकालने केलिए जादा से जादा सबूतों की जरूरत होती है। सबूत जितने अधिक होगे उतना तारण अधिक मजबूत बनता है। इसे, समर्थन पाने का सिद्धांत (प्रिन्सिपल ऑफ कन्फर्मेशन) कहते है।
अलग अलग टेक्निकल निर्देशों पर आपको नजर रखनी चाहिए। चार्ट में दिखनेवाले पॅटर्न से व्हॅल्यूम का समर्थन मिलता है क्या? चार्ट की मदद से निकाले गए तर्क के मुव्हींग अॅवरेज और अॅसिलेटर सच में समर्थन देते है क्या?
हफ्ते का चार्ट और मासिक चार्ट कौनसा संकेत देते है? यह सभी टेक्निकल निर्देश के कारण आपने निकाले हुए तर्क की दिशा में बाजार जा रहा है या नहीं? इन सभी बातों पर आपको ध्यान रखना चाहिए।
हम आशा करते है की हमारी ये चार्ट के प्रकार – Types of Charts in Stock Market in Hindi ब्लॉग पोस्ट आपको पसंद आयी होगी अगर आपको शेयर मार्किट से जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप कृपया कमेंट में जरूर पूछे।
।। धन्यवाद ।।
1 Comments
Bahut achchhi tarah se bataya hai. Apki website professional lagti hai. Keep it up 👍
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